कल्पना कीजिए कि यदि किसी अस्पताल में डॉक्टर ना हो तो क्या इलाज संभव है लेकिन कल्पना कीजिए
कि यदि डॉक्टर हो भी और अस्पतालों में जीवन रक्षक दवाइयां ना हो तो क्या डॉक्टर नर्सेज और अन्य पैरामेडिक्स लोगों की जान बचा पाएंगे
जीवन रक्षक दवाइयों से याद आया आज हम इस ब्लॉग में बात करने वाले हैं जीवन रक्षक दवाइयों को बनाने वाले अनुसंधान करने वाले वितरण एवं भंडारण करने वाले दवा की गुणवत्ता परीक्षण करने वाले एक संवर्ग फार्मासिस्ट की
निम्नलिखित शब्द स्वास्थ्य व्यवस्था के शोषित बिहार के फार्मासिस्ट अर्जेस राज श्रीवास्तव के हैं
बिहार के बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से लगभग हर कोई परिचित है। अस्पतालो में दवा, स्वास्थ्यकर्मी के कमी , ऑक्सिजन बेड ,कोविड के इलाज के लिए जरूरी दवाई की कालाबजारी और दवाओं के अवैध भंडारण से इस महामारी में बहुत लोगो की असामयिक मृत्यु हो गई
आखिर इसके लिए जिम्मेवार कौन है
आखिर ऐसा हुआ क्यों??
लेखक: अर्जेश राज श्रीवास्तव
वैश्विक महामारी में बेरोजगार फार्मासिस्ट चाह के भी अपनी सेवा नहीं दे पा रहे है। ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 और पीपीआर 2015 के तहत फार्मासिस्ट सिर्फ दवा वितरण ही नहीं बल्कि फार्मा प्रैक्टिस , स्टॉक एंड सप्लाई चेन मैनेजमेंट, दवा का प्रभाव/दुष्प्रभाव का निरीक्षण, दवा की खुराक को निर्धारित करने में पूरी तरह से सक्षम है। लेकिन बिहार में ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट का धड़ल्ले से उलंघन हो रहा है। इसके फस्वरूप हाल में देखा गया है कि कोविड़ की दवा जैसे कि रेंडिसिविर आदि बाजार में 50हजार रुपए तक बेचे गए है ।
अस्पतालो में फार्मासिस्ट के निरीक्षण में कोविड मरीजों के इलाज ना होने के कारण, दवा के ओवर डोज से नए बीमारियां जैसे ब्लैक फंगस आदि का उत्पति हुआ है ।
ऐसे समय मे भी बिहार के स्वास्थ्य मंत्री का "बिहार में वेंटिलेटर हेतु सुयोग्य व्यक्ति न होने" का कुतर्क, सरकार की मंशा पर भी सवाल उठता है जबकि अन्य राज्यों में (जैसे -यू.पी.) में फार्मासिस्टों को उचित प्रशिक्षण दे कर इस कार्य के लिए तैनात किया गया है।
हाल में ही देखा गया कुछ नेताओं द्वारा दवा को राशन पानी की तरह बांटा जा रहा है। जिससे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस होने की संभावना बढ़ जाती है । जो कि गलत है दवा वितरण और भंडारण का अधिकार केवल फार्मासिस्ट को है
फार्मासिस्ट दवा के अच्छे जानकार होते है
परंतु सरकार फार्मासिस्ट की सेवा लेने के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं जो कि मात्र 6 महीने के सर्टिफिकेट कोर्स किए है, और ना तो दवा के बारे विशेष जानकारी रखते है और ना ही बीमारी को पहचानने का ज्ञान है उन्हें चिकित्सीय सलाह देने के लिए नियुक्त किया गया है।। दवा के विशेषज्ञ कहे जाने वाले फार्मासिस्ट , चाह कर भी सेवा नहीं दे पा रहे है और इस त्रासदी में अपने समाज और मातृभूमि को सेवा ना देने के कारण असहाय और लाचार महसूस कर रहे है ।।
बता दें कि राज्य में सिर्फ एक औषधि जांच केंद्र है जो कि कर्मियों और उपकरणों के आभाव में निष्क्रिय है । कोरोना काल में रेंडिसिवीर और अन्य दवाईयो के गुणवत्ता पर बहुत प्रश्न उठे परंतु जांच केंद्र के अभाव में उचित कार्यवाही ना हो सकी ।अगर सरकार राज्य में और भी औषधि जांच केंद्र खोल उसमें फार्मासिस्टों की न्युक्ति कर, जांच कराए तो नकली दवाओं के कारोबार पर लगाम लगाई जा सकती है।
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👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंGood post to draw attention of government .. !
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